इस बार राम नवमी पर ठीक वैसे ही नक्षत्र व संयोग बन रहे हैं जैसे भगवान राम के पैदा होने के समय बना था। ऐसा संयोग सालों में एक बार आता है।
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आप जीवन में न जाने कितनी ही बार यह प्रण लेते हैं कि जिंदगी के सारे अहम फैसले भावना को इतर रखते हुए करेंगे और दुनियादारी को ही अपने व्यवहार का हिस्सा बनाएंगे। रिश्ते चाहे कितनी भी नजदीकी लिए हों वहां एक प्रकार की तटस्थता व दूरी बनाए रखेंगे। सारी बातचीत में एक प्रकार की उदासीनता का पुट हो ऐसी आपकी कोशिश होती है।
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एक प्यार करने वाले से पूछा गया कि प्यार क्या होता है? कैसा लगता है? तो उसका जवाब था कि प्यार गेहूं की तरह बंद है, अगर पीस दें तो उजला हो जाएगा, पानी के साथ गूंथ लो तो लचीला हो जाएगा… बस यह लचीलापन ही प्यार है, लचीलापन पूरी तरह समर्पण से आता है, जहां न कोई सीमा है न शर्त। प्यार एक एहसास है, भावना है। प्रेम परंपराएं तोड़ता है। प्यार त्याग व समरसता का नाम है।
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चैत्र नवरात्रि में हर दिन देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ दिनों में विविध प्रकार की पूजा से माता को प्रसन्न किया जाता है। नवरात्रि में देवी को विभिन्न प्रकार के भोग लगाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार प्रतिपदा से लेकर नौ तिथियों में देवी को विशिष्ट भोग अर्पित करने तथा ये ही भोग गरीबों को दान करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। उसके अनुसार-
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पतझड़ और वसंत साथ-साथ आते हैं। प्रकृति की इस व्यवस्था के गहरे संकेत-संदेश हैं। अवसान-आगमन, मिलना-बिछ़ुडना, पुराने का खत्म होना-नए का आना… चाहे ये हमें असंगत लगते हों, लेकिन हैं ये एक ही साथ…। एक ही सिक्के के दो पहलू, जीवन सत और सार दोनों ही…
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